डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध का परिचय:
डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन का
जन्म 05 जनवरी, 1905 को पंजाब
प्रांत में मोहाली के
निकट सोहना गाँव में एक पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता लाला रामशरण
दास अम्बाला में अध्यापक थे। भदन्त जी ने १९२० में १० वी, १९२४ में १९ साल की आयु में स्नातक की परीक्षा पास की। भारत
के स्वतंत्रता आन्दोलन में
भदन्त जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। महात्मा गाँधी, पुरुषोत्तम दास टंडन, पंडित जवाहरलाल नेहरु, बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर, महापंडित राहुल संकृत्यायन, भिक्षु जगदीश कश्यप, भिक्षु धर्मरक्षित आदि लोगो के
साथ मिलकर वे भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रहे। वे श्रीलंका में
जाकर बौद्ध भिक्षु हुए और विद्यालंकर
विश्वविद्यालय के
हिंदी विभाग में अध्यक्ष भी रहे। भदन्त जी ने पालि भाषा से हिंदी में अनेक किताबों
का अनुवाद किया। साथ ही अनेक मौलिक ग्रन्थ भी रचे जैसे- अगर बाबा न होते, भिक्षु के पत्र, दर्शन:वेद से
मार्क्स तक, बौद्ध धर्म एक बुद्धिवादी अध्ययन, बौद्ध जीवन पद्धति, जो भुला न सका, ३१ दिन में पालि, पालि शव्दकोष, सारिपुत्र मौद्गाल्ययान की साँची, अनागरिक धरमपाल
आदि। २२ जून, १९८८ को उनका नागपुर के मेयो अस्तपताल में
परिनिर्वाण हो गया।
डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र का परिचय:
नागपुर में अशोक विजयदशमी के
दिन 14
अक्टूबर,1956 को बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर ने
अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी. उसी ऐतिहासिक स्थल से
मात्र 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वर्धा. जहाँ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति
द्वारा 14 अप्रैल, 2004 को डॉ. अम्बेडकर की जयंती के दौरान
कार्यक्रम के अध्यक्ष व महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के
तत्कालीन कुलपति प्रो.जी.गोपीनाथन द्वारा भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ.
अम्बेडकर के अगाध हिंदी-प्रेम एवं हिंदी के प्रति उनकी संवैधानिक प्रतिबद्धता को
देखकर और भारत में बौद्ध धम्म एवं दर्शन को पुनर्जीवित करने हेतु उनके कार्य को
सुदृढ़ आधार प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय में ‘डॉ.
भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र’ की
आधारशिला रखी गई।
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा और राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा डॉ. भदंत
आनंद कौसल्यायन की जन्मशताब्दी समारोह 29-30 मार्च,
2005 को मनाते हुए इसकी स्थापना का प्रस्ताव पारित किया गया कि वर्धा में उनके नाम
से एक बौद्ध अध्ययन केंद्र स्थापित किया जाए. इस प्रस्ताव को महात्मा गाँधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की नई दिल्ली में आयोजित चौथी विद्या परिषद ने
तत्कालीन कुलपति प्रो.जी.गोपीनाथन की अध्यक्षता में 14
जुलाई, 2005 को अनुमोदित किया.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली की इपोक मेकिंग सोशल थिंकर्स योजना के अंतर्गत
11 वीं पंचवर्षीय योजना में अनुदान की स्वीकृति मिली। 05 अक्टूबर, 2008 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. सुखदेव थोरात ने
वर्धा आकर केंद्र के प्रथम पाठ्यक्रम “बौद्ध अध्ययन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा”
की कक्षाओं को विधिवत आरंभ करने का उद्घाटन किया।
जिस प्रकार वर्धा से महात्मा
गांधी का नाम जुड़ा है, उसी प्रकार वर्धा की राष्ट्रभाषा
प्रचार समिति एवं भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से भदन्त जी का भी नाम जुड़ा है। वे
सन् 1942 से सन् 1951 तक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रधानमंत्री रहे। हिंदी और
बौद्ध धम्म व दर्शन के क्षेत्र में उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण है, उन्होंने पालि भाषा के त्रिपिटक व अट्ठकथाओं समेत कई प्रमुख बौद्ध
ग्रंथों का हिन्दी भाषा में अनुवाद किया। उनके इस विशेष योगदान को देखते हुये ही,
इस केंद्र का नाम ‘डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन
केन्द्र’ रखा गया।
जिस प्रकार पूरे विश्व में आज युद्ध, हिंसा, अराजकता, नफरत और
असहिष्णुता का माहौल व्याप्त है, ऐसे में बौद्ध-धम्म-दर्शन
की मैत्री, करुणा, शील एवं समस्त प्राणियों के प्रति व्यापक
कल्याण की भावना का प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन-अध्यापन और शोध, संपूर्ण प्राणी जगत के लिए बेहद जरूरी एवं उपयोगी है। बौद्ध दर्शन मनुष्यता
एवं समाज के लिए उच्च मानवीय मूल्यों, सदाचार व नैतिकता
एवं विश्व-बंधुत्व की भावना को स्थापित करता है। यह अध्ययन केंद्र इन उद्देश्यों
को पूरा करने के लिए कृत संकल्प है। बौद्ध धम्म एवं दर्शन से संबंधित अनेक
दुर्लभ ग्रंथ, लेख, शिलालेख एवं अभिलेख
ब्रह्मी लिपि, पालि भाषा, संस्कृत, बौद्ध संकर संस्कृत, चीनी भाषा, तिब्बती आदि भाषाओं में संकलित हैं। जिन पर अभी भी गम्भीर शोध किये
जाने की आवश्यकता है। आज भी इनका हिंदी भाषा में अनुवाद,
बौद्ध अध्ययन की अकादमिक तथा सामाजिक उपयोगिता के लिए बहुत जरूरी है, केन्द्र इस
दिशा में गंभीर प्रयास करेगा। केंद्र का श्रीलंका के केलानिया विश्वविद्यालय से
एम.ओ.यू. है. जिसके अंतर्गत दोनों विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों, शोधार्थियों व अध्यापकों को सुविधा प्रदान करते हुये एक दूसरे के यहॉ
अध्ययन-अध्यापन के लिए आमंत्रित करेंगे।
आज यह केंद्र विदर्भ के पुरात्तव महत्व के बौद्ध
स्थलों के ऊपर शोध कराए गए हैं, साथ ही मिलने वाले नए स्थलों पर भी शोध करा रहा है
और कई स्थानों पर चल रहे उत्खनन के कार्यों पर प्रगति रिपोर्ट तैयार करवा रहा है.
विदर्भ में किसान आत्महत्या देश की प्रमुख समस्याओं में से एक है, हजारों किसानों
आज भी अपनी जान देते रहते हैं. लेकिन सरकार और विद्वान मिलकर आज भी इस समस्या पर
सही तरीके से हल नहीं निकाल पायें हैं. यह केंद्र विदर्भ के किसानों की आत्महत्या
पर बौद्ध दृष्टिकोण से शोध करा रहा है. बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के बौद्ध
धम्म ग्रहण करने के बाद भारत में दलितों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी है ? इस
विषय पर भी हर वर्ष परियोजना शोध कार्य व सर्वेक्षण केंद्र कराता रहता है. आज
दुनिया में पर्यावरण संरक्षण और आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है, इस विषय को केंद्र ने
अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया हुआ है. आज इस केंद्र में बौद्ध अध्ययन और पालि
भाषा को पढ़ने व सीखने के लिए उ.प्र., बिहार, झारखंड, म.प्र., छत्तीसगढ़, राजस्थान,
उड़ीसा और महाराष्ट्र आदि राज्यों से विद्यार्थी देश भर से आते हैं. अभी हाल में मार्च
2015
में विश्वविद्यालय को नैक ने “ए” ग्रेड दिया है.
केन्द्र
की भावी योजनाऐं इस प्रकार हैं:
1. पालि
भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की पालि कांग्रेस
और भारतीय बौद्ध अध्ययन सोसायटी के अधिवेशन को आयोजित करना।
2. केन्द्र
द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर की बौद्ध अध्ययन की हिंदी में शोध पत्रिका का
प्रकाशन किये जाने की योजना है।
3. बौद्ध
अध्ययन के महत्वपूर्ण ग्रथों का पालि भाषा, तिब्बती
भाषा, मंदारिन भाषा, सिंहली भाषा से
और बर्मी भाषा से हिन्दी में अनुवाद करने की एक वृहद योजना है।
4. बौद्ध
अध्ययन व पालि भाषा के विद्वानों के जीवन पर वृत्तचित्र बनाने, उनका साक्षात्कार लेने और उनके लेखन की पाण्डुलिपियों का संग्रह करने
की योजना है।
5. डॉ.
अम्बेडकर के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरान्त दलितों की स्थिति का विभिन्न
दृष्टिकोणों से अध्ययन।
6. पुरातत्व
महत्व के ऐतिहासिक स्थलों और बौद्ध मूर्तिकला जैसे: गान्धार, मथुरा, अमरावती कला
शैली की गैलरी व मूर्तियाँ प्रदर्शित करना. गौतम बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण
घटनाओं के चित्र, प्रतीक व उनकी गैलरी को बनाने का प्रयास करना.
7. सम्पूर्ण
पालि व महायान साहित्य, उनकी पांडुलिपियाँ. बौद्ध विद्वानों की कृतियां, उनके
चित्र और किये गए कार्यों का उल्लेख करती एक गैलरी. भारतीय
उपमहाद्वीप में मिले बौद्ध स्थलों, बौद्ध राजाओं
के जीवनवृत, सम्राट अशोक के अभिलेख, शिलालेख, स्तम्भों आदि का प्रारूप और चित्र तैयार
किया जायेगा। बुद्धकालीन संस्कृति व लोककला का प्रदर्शन. जैसे: मनोरंजन के साधन, रहन-सहन,
खान-पान, उत्सव, आभूषण व पशु-पक्षी.
विश्वविद्यालय
और केंद्र का प्रशासन:
डॉ.
भदंत आनंद कौसल्यायन के सहयोगी रहे डॉ.एम.एल.कासारे को केंद्र विकसित करने की
जिम्मदारी दी गयी, उन्होंने जून 2007 से केन्द्र का प्रभार संभाला और चार डिप्लोमा
व एम.ए. के पाठ्यक्रम को आरंभ कराया। डॉ. कासारे अप्रैल 2012 तक केन्द्र के प्रथम
संस्थापक निदेशक रहे। उनके बाद डॉ. सुरजीत कुमार सिंह प्रभारी निदेशक बनाये गये, उन्होंने एम.फिल. व पी-एच.डी. के शोध पाठ्यक्रम व पालि भाषा सीखने के
लिए 12वीं स्तर का डिप्लोमा आरम्भ कराया. साथ ही डॉ. सिंह ने केन्द्र की सभी
पत्रावलियों को व्यवस्थित करवाया और केंद्र के पुस्तकालय को पूर्णतया कंप्यूटरीकृत
कराया। आज डॉ. भदंत सावंगी मेधाकर विभागीय पुस्तकालय में बौद्ध धम्म एवं दर्शन
से संबंधित लगभग 2300 पुस्तकें उपलब्ध हैं।
डॉ. सुरजीत कुमार सिंह केंद्र को
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं,
उनका कहना है कि यदि कोई भारत में बौद्ध अध्ययन और पालि को पढ़ना व जानना चाहे तो
वह यहाँ का रुख करे और हमारी एक ब्राण्ड इमेज बन सके, क्योंकि वर्धा कौसल्यायन जी
और धर्मानंद कोसंबी जी की कर्मभूमि है. इसलिए हमारा उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है.
हम हमेशा उन मनीषीयों की तरह ही शोधपरक व गुणवत्तापूर्ण पठन-पाठन में सदैव संलग्न
रहें. डॉ. सुरजीत कुमार सिंह पालि भाषा एवं साहित्य अनुसंधान परिषद की अन्तरराष्ट्रीय
स्तर की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका संगायन का संपादन भी करते हैं, जिसने कुछ समय में
ही बौद्ध जगत में अपनी गंभीरतापूर्ण शोध सामग्री देने के कारण ख्याति अर्जित की
है। आज यह केंद्र विश्वविद्यालय के संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो.एल.कारुण्यकरा
और प्रति कुलपति प्रो. चितरंजन मिश्र और माननीय कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र के
मार्गदर्शन में आगे बढ़ रहा.
डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र
संस्कृति विद्यापीठ
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय
वर्धा (महाराष्ट्र) पिन-४४२००१.
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